जीरो का आविष्कार किसने किया | 0 Ki Khoj Kisne Ki | Zero ka Avishkar Kisne Kiya | जीरो क्या हैं | शून्य का प्रयोग | शून्य का मतलब क्या होता है | जीरो का इतिहास | जीरो का अविष्कार कब हुआ | 0 ka Avishkar Kisne Kiya
Hello दोस्तों आज हम इस लेख की मदद से Zero ka Avishkar Kisne Kiya तथा Zero क्या है इससे जुड़े सभी तथ्यों को जानेगे वैसे जब भी हम गणित पढ़ते है कोई भी संख्या देखते है तो हमारे मन मे zero का का खयाल जरूर आता है। जैसा की हमे मालूम है बिना ज़ीरो के हम कोई भी बड़ी संख्या को assume ही नहीं कर सकते अगर आज के समय या पहले जीरो का आविष्कार नहीं हुआ होता तो क्या होता।
वैसे शून्य गणित मे या किसी भी संख्या मे शून्य का बहुत ही बड़ा महत्व है। जभी बात आती है की शून्य का आविष्कार किसने किया ? और कब किया तो हमे मालूम नहीं होता कई बार ये प्रश्न एग्जाम मे भी आता है । अगर आपके के भी मन मे यही सवाल है की जीरो क्या है ? और 0 Ki Khoj Kisne Ki तो इस लेख को पूरा पढिए और पूरी जानकारी प्राप्त करिए ।
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प्राचीन समय से ही और आज तक शून्य का महत्व हर क्षेत्र मे काफी रहा है और रहेगा भी क्यों की शून्य के बिना 1 से 9 के आगे के अंकों को हम सोच भी नहीं सकते। इसका योगदान टेक्नॉलजी के क्षेत्र मे भी बहुत ज्यादे है बिना इसके सायद आज हम कंप्युटर नहीं देख पाते।
जीरो किसे कहते है (जीरो क्या हैं)
Zero एक संस्कृत का शब्द हैं जिसे संस्कृत में शून्य कहा जाता हैं। गणित मे जीरो अंक माना गया है। शून्य को खाली मात्रा का प्रतिनिधित्व करने वाली संख्या भी कहते है । इसे गणितीय भाषा मे ‘0’ से दर्शाया जाता है। इंग्लिश भाषा मे इसे Zero तथा हिन्दी मे इसे शून्य कहते है।
संख्या जीरो का अपने मे कोई महत्व नहीं होता है लेकिन यदि जब यह किसी दी हुई संख्या के दाई तरफ लिख दिया जाता है तो उस संख्या का मान 10 गुना बढ़ जाता है । उदाहरण के तौर पर हम नीचे दी हुई संख्याओ का मान बढ़ते हुए देख सकते है ।
उदाहरण :-
- 20: जैसा की हम देख रहे है 2 के पीछे जीरो लगा दने पर वह संख्या 20 हो जाती हैं।
- 350: अगर हम संख्या 35 के पीछे जीरो लगा दे तो वह संख्या 350 हो जाती है ।
- 500: संख्या 50 के पीछे एक शून्य लगा देने पर उस संख्या का मान 500 हो जाता हैं।
- 1500: संख्या 150 के last मे जीरो लगा देने पर उसका मान 1500 हो जाता है।
- 2500 के पीछे जब हम जीरो लगा देते है तो ओ संख्या 10000 बढ़ कर 25000 हो जाती है ।
अगर हम एसे ही किसी भी छोटी या बड़ी संख्या के पीछे जीरो लगते रहे तो उस संख्या काम मान 10 गुना बढ़ता जाएगा अगर वह संख्या दसमलव मे न हो तो ।
शून्य का प्रयोग। (Uses of Zero)
- जैसा की ऊपर हमने देखा किसी भी संख्या मे दाई तरफ (पीछे) शून्य लगाने पर उसका मान बढ़ रहा था लेकिन जब हम किसी संख्या के आगे स्टार्टिंग मे यदि जीरो लगाते है है तो उस संख्या के मान मे कोई परिवर्तन नहीं होता है ।
उदाहरण :-
- 07: दी हुई संख्या 7 के आगे जब हम शून्य लगाते है तो उस संख्या मे कोई परिवर्तन नहीं होता वह संख्या जीरो ही रहती है ।
- 070: संख्या 70 के आगे सून्य लगाने पर उस संख्या मे कोई परिवर्तन नहीं होता अर्थात वह मूल संख्या 70 ही रहती है । आगे जीरो लगाएंगे तो 099 होगा।
अर्थात इससे यह पता चलता है की जब भी हम किसी संख्या के आगे शून्य का प्रयोग करते है तो उसके मान मे कोई परिवर्तन नहीं होता है अर्थात उस संख्या का मान न ही बढ़ता है न ही घटता है।
2. जब भी हम किसी वास्तविक संख्या मे जीरो को जोड़ते है तो भी उसके मान मे कोई Change नहीं होता और वापस से हमे वही संख्या प्राप्त होती है ।
उदाहरण :-
- 5 + 0 = 5
- 35 + 0 = 35
- 70 + 0 = 70
- 1450 + 0 = 1450
- 1780+0 = 1780
3. जब हम किसी भी वास्तविक संख्या मे से शून्य को घटते है तो हमे same वही संख्या मिलती है उसके मान मे कोई परिवर्तन नहीं होता पर उसके चिन्ह मे परिवर्तन हो जाता है। इसे हम नीचे दिए गए उदाहरण की मदद से समझेंगे।
उदाहरण :-
- -5 – 0 = -5
- 25 – 0 = 25
- -22 – 0 = -22
- 371 – 0 = 371
4. जब भी हम किसी दी हुई वास्तविक संख्या मे शून्य का गुणा करते है तो उस संख्या का मान ज़ीरो हो जाता है।
उदाहरण :-
- 3 × 0 = 0
- 15 × 0 = 0
- 632 × 0 = 0
- 34561 × 0 = 0
5. जब हम किसी भी संख्या मे जीरो से भाग देते है तो उस दशा मे संख्या का भागफल अनंत (∞) आता है। अतः उस संख्या का पूर्ण रूप से भाग नहीं होता।
उदाहरण :-
- 3 ÷ 0 = ∞
- 427 ÷ 0 = ∞
- 289÷ 0 = ∞
- 210050 ÷ 0 = ∞
गणित (Mathematics) मे जीरो एक वास्तविक संख्या (Real नंबर) या पूर्णांक या दूसरे किसी बीजीय संरचनाओ की योगात्मक पहचान करने मे प्रयोग होता है ।
English भाषा की बात करे तो इसे अंग्रेज़ी में Zero के साथ-साथ British English मे Nought तथा American English मे Naught भी कहा जाता है।
आम तौर पर साधारण भाषा अगर कहे तो शून्य एक सबसे छोटी No-Negetive संख्या है , और इसका अपने मे कोई मान नहीं होता पर यह किसी संख्या के साथ मे लग कर उसके मान मे परिवर्तन कर देती है।
शून्य का आविष्कार किसने किया ( 0 ka Avishkar Kisne Kiya)
हम यह जानते है की बिना शून्य के बिना 9 के बाद किसी संख्या का अनुमान लगाना आसान नहीं है । बहुत समय पहले जब 0 Ki Khoj नहीं हुई थी तब उस समय मे किसी भी चीज का लेखा जोखा करने मे काफी परेशानी होती थी वैसे तो ये भी कहा गया है किस Zero का प्रयोग काफी समय पहले से ही होता चल या रहा है वैसे इस विषय पर शुरू से ही संदेह बना रहा है ।
शून्य के आविष्कार के आविस्कार के बारे मे अलग-अलग जगहों पर बहुत से लोगों की अलग राय है पर इसका मुख्य श्रेय भारत के एक महान विद्वान ब्रह्मगुप्त (Brahmagupta) को जाता है। Ancient Research के अनुसार यह पता चलता है की 628 ई. ब्रह्मगुप्त ने सबसे पहले शून्य के सिद्धांत का वितरण लाया था ।
शून्य की खोज के बाद गणित के क्षेत्र में एक बहुत ही बड़ा बदलाव आया और हमे आगे की संख्याये मिली और भी कई छेत्रों मे काफी तरक्की हुई और नई-नई चीजों की खोज हुई ।
ये ही कहा जाता है की कुछ महान भारत के अर्थशास्त्री और गणितज्ञ आर्यभट्ट (Aryabhata) को भी जीरो का खोजकर्ता मानते हैं। कहा जाता है की आर्यभट्ट ने ब्रह्मगुप्त से पहले शून्य का प्रयोग किया था। पर वह इसका सिद्धांत देने मे असमर्थ रहे जिसके कारण उन्हे (0) की खोज की उपाधि नहीं मिली और ब्रह्मगुप्त को शून्य Avishkark माना गया ।
कुछ अमेरिकी गणितज्ञो का तो ये भी कहना है की शून्य की खोज भारत में नहीं हुई थी, बल्कि इसकी खोज अमेरिका मे अमेरिकी गणितज्ञ आमिर एजेल द्वारा कंबोडिया में सबसे पहले हुई थी पर इसका भी कोई पुख्ता सबूत नहीं है ।
प्राचीन समय के लोग शून्य को बिना किसी सिद्धांतों के अनेकों प्रकार से इसका प्रयोग करते थे और पहले तो इसका कोई चिन्ह भी नहीं था । सोचिए अगर 0 Ki Khoj नहीं हुई होती तो बिना इसके हमारी गणित कैसे होती और इस अंधुनिक युग की इतनी तरक्की कैसे होती बिना इसके तो कंप्युटर का होना असंभव जैसा है क्योंकी ये 01,01 से बना है ।
जो भी हम आज 0 को हर जगह आसानी से प्रयोग कर रहे है उसके पीछे बहुत से महान गणितज्ञ और वैज्ञानिकों का योगदान जुड़ा हुआ हैं।
आसान सबदों मे अगर हम कहे की 0 Ki Khoj Kisne Ki तो इसका उत्तर है की ब्रह्मगुप्त ने शून्य का सिद्धांत विवरण के साथ पेश किया था तथा गणितज्ञ व ज्योतिषी आर्यभट्ट ने इस खोज का उपयोग किया था।
शून्य का मतलब क्या होता है? (Meaning of Zero in Hindi)
आसान भाषा मे कहे तो शून्य का मतलब “Null” कुछ नही या “Empty” खाली होता है। गणित मे शून्य का काफी महत्व है इसके बिना गणित अधूरी है, जीरो का उच्चारण अलग-अलग भारतीय गणितज्ञों ने अलग अलग रखा है जो की इस प्रकार है – शून्य, शून्य स्थान, शून्य संख्या और निर्देशांक जो अलग अलग जगहों पर कई तरीकों से किया जाता है ।
शून्य बस नाम ही शून्य है, क्यों की जब यह किसी संख्या की पीछे लग जाता है तो उस संख्या के मान मे काफी परिवर्तन हो जाता है । गणित मे इसे का महत्व पूर्ण संख्या माना गया है , और इसका उपयोग संख्या प्रणाली तथा काफी अन्य जगहों पर किया जाता है।
हम सब को पता है की शून्य के बिना हम किसी संख्या की गणना नहीं कर सकते तथा इसके बिना 1 से 9 की संख्याओ की सोचने की बात काफी दूर है। अगर जीरो नहीं होता तो इस अंधुनिक युग का विकाश सायद नहीं हो पता आज कल जो भी टेक्नॉलजी हम उसे कर रहे है वो सब शून्य पे ही आधारित हैं । प्राचीन समय से लेकर आज तक शून्य का महत्व बना हुआ है और आगे भी बना रहेगा ।
जीरो का अविष्कार कब हुआ
जीरो के आविष्कार का सही समय अब तक पता नहीं चल पाया है परन्तु यह ज्ञात है की इसका प्रयोग आर्यभट्ट के काल से पुराना है, आर्यभट्ट के काल मे शून्य का प्रयोग किया गया है क्योंकी इसके बहुत से संकेत भी मिले है। 2017 में, पाण्डुलिपि से जीरो की खोज के 3 नमूने लेकर उनका रेडियोकार्बन द्वारा विश्लेषण किया गया।
इससे मिले result काफी आश्चर्यजनक हैं क्योंकी कि इन तीन नमूनों की बनावट तीन अलग-अलग शताब्दियों की गई थी- पहली नमूने की संरचना 225 ई॰ – 383 ई॰, दूसरी नमूने की संरचना 680–779 ई॰, तथा तीसरे नमूने की संरचना 885–993 ई॰। तीनों नमूनों का रेडियोकार्बन रिजल्ट एक साथ नहीं मैच कर रहा था की एनहे एक साथ मिलाया जा सके।
जीरो की खोज से काफी पहले से जीरो की जगह अन्य कई चिन्हों के प्रयोग के सबूत मिले है।
जीरो का इतिहास
अगर हम शून्य के इतिहास की बात करे तो यह बहुत ही बड़ा है इसका जिक्र हम प्राचीन समय की गुफाओ, कितबों, तथा मंदिरों मे देखते चले या रहे है । अगर आप शून्य के अविष्कार के बारे मे जानना चाहते है तो इसके इतिहास को समझना और जानना काफी महत्वपूर्ण है।
बहुत सी सोधो के अनुसार शून्य की खोज और आविष्कार का मुख्य श्रेय अधिकतर भारत के गणितज्ञों को दिया जाता है। वाइज़ भी भारत शून्य की खोज तथा उसके सबूतों के बारे में जानकारी का सबसे पुराने केंद्रों में से एक था। वैसे देखा जाए तो आज के अंधुनिक समय में शून्य के सिद्धांत और इसके प्रयोग आगे निकल गया हैं। लेकिन प्राचीन समय मे इसका परोग इस प्रकार नहीं किया जाता था ।
अगर आम तौर पर देखा जाए तो शून्य का अविष्कार एक स्थानधारक के रूप मे किया गया और आगे चल कर इसकी वजह से बहुत सी नई संभावनए प्रकट हुई और इसका उपयोग बढ़ता गया। भारतीय प्राचीन वैदिक साहित्यो मे कई जगहों पर शून्य का जिक्र “शून्य (Shunya)” या “शून्यता (Shunyata)” के रूप मे किया गया है, संख्या के रूप में शून्य के प्रयोग करने का श्रेय भी भारत को मिलता है।
जैस की हम जानते है शून्य का एक सबसे पहला ज्ञात प्रयोग 575 ईसा पूर्व में लिखे ग्रंथ वराहमिहिर (Varahamihira) के “बृहत्जातक (Brihat Jataka)” में भी मिलता है। जीरो का एक और दूसरा उल्लेख शुंग वंश के महान गणितज्ञ ब्रह्मगुप्त ने अपनी महान पुस्तक “ब्रह्मस्फुटसिद्धांत (Brahmasphutasiddhanta)” में भी 628 ईसा पूर्व में किया था। वैसे ब्रह्मगुप्त के द्वारा शून्य का जिक्र करने से पहले भी शून्य का प्रयोग हमे कई प्राचीन गुफाओ, मंदिरों, ग्रंथों, तथा अन्य पुरतत्वों मे भी मिल है।
वियसे तो ये साफ नहीं कहा जा सकता कि Zero ka Avishkar Kisne Kiya तथा 0 का आविष्कार कब हुआ तथा इसका प्रयोग कब से होता चला आ रहा है लेकिन यह जरूर सिद्ध हुआ है की शून्य की खोज भारत की ही देन है।
सुरुवाती दौर मे शून्य का परोग बस एक स्थानधारक के रूप मे किया जाता था लेकिन बाद में शून्य का प्रयोग गणित का एक मुख्य भाग बन गया। ब्रह्मगुप्त द्वारा (Concept of zero) शून्य की संकल्पना लाने के बाद भारत इसका प्रयोग कई छेत्रों मे बहुत तेजी से होने लगा। बहुत से लोग इस बात पे विश्वास रखते है की आधुनिक गणित का विकास शून्य की खोज के आधार पर ही हुआ है।
कहा जाता है की शून्य की संकल्पना काफी पुरानी है पर यह 5वी शताब्दी तक भारत में काफी विकसित था। और बारहवीं शताब्दी के last तक यह बहुत से अन्य देशों तथा यूरोप के देशों में भी पहुंच गया और वहां के गणितज्ञों द्वारा गणना में शून्य का प्रयोग होने लगा।
ये भी कहा गया है की की गणना प्रणाली का प्रयोग सबसे पहले सुमेर के लोगों द्वारा किया जाता था, उसके बाद बेबीलोन के लोगों ने इसे अपनी सभ्यता मे जोड़ा तथा गणना प्रणाली को स्वीकार किया उस समय यह प्रतीकों पर आधारित थी। वैसे तो गणना प्रणाली की खोज 4 से 5 हजार वर्ष पहले हुई थी इससे पहले बेबीलोन की सभ्यता ने कुछ चिन्हों का प्रयोग स्थानधारक की तरह किया।
मायानो ने 0 को एक स्थान धारक की तरह प्रयोग करना शुरू किया। तथा मायानो द्वारा इसका परोग पंचांग प्रणाली के निर्माण में किया जाने लगा उन्होंने ने इसे गणना मे कबी परोग नही किया।
इसके बाद शून्य के प्रयोग का जिक्र मे भारत का नाम आता तथा तबसे यह अबतक प्रयोग होता चल या रहा है। बहुत से लोगों का यह कहना है की सून्य की खोज बेबीलोन की सभ्यता मे हुई है। पर विशेषज्ञों द्वारा यह माना गया है की शून्य की खोज भारत मे हुई है तथा यह से इसका विस्तार हुआ है।
शून्य के अन्य नाम – Other names of Zero
ऊपर के पैराग्राफ मे हमने 0 Ki Khoj Kisne Ki, इसके प्रयोग, तथा इसकी हिस्ट्री के बारे मे जाना अब हम शून्य के बाकी स्थानों पे प्रयोग होने वाले अन्य नाम के बारे मे जानेगे। वैसे तो भारत मे हम “0” को जीरो तथा शून्य के नाम से जानते है। पर इसे कई देशों मे अन्य नाम से जाना जाता है । आइए हम इसके हम अन्य नामों को देखते है । नीचे दिए गए अलग-अलग देशों मे अलग नाम दिए जाने के बाद अब इसका अंग्रेजी नाम जीरो (Zero), जो की वर्तमान समय मे लगभग हर जगह Use किया जा रहा है।
भारत मे प्राचीन समय में हिन्दुओ द्वारा प्रयोग की जाने वाली पांडुलिपियों में खाली स्थान दर्शाने के लिए “शून्यम” शब्द का प्रयोग होता था।
उसके बाद शून्य (0) का विस्तार अन्य देशों मे हुआ तो भारत बाद अरब में इसे “Sifra” कहा जाने लगा जो की एक अरबी शब्द है । तथा उर्दू में शून्य को “सिफर” कहा जाने लगा, जिसका हिन्दी मे अर्थ – कुछ भी नहीं होता है ।
मिस्र मे शून्य का प्रयोग “Nalla” शब्द के रूप किया गया।
इटली मे शून्य का नाम (Zephyrus) दिया गया, आगे चल के इसे बदलकर (Zefiro)” रख दिया गया जिसका जिक्र Italian Mathematician फिबोनाची ने अपनी बुक “The Book of Calculations” में दी है।
Conclusion
इस लेख के माध्यम से हमने “0” Zero ka Avishkar Kisne Kiya तथा शून्य किसे कहते है तथा शून्य के प्रयोग तथा शून्य के इतिहास के बारे मे जाना । अगर आपको यह लेख पसंद आया हो तथा इससे आपको 0 Ki Khoj Kisne Ki की जानकारी प्राप्त हुई हो तो इस पोस्ट को रेटिंग जरूर दे तथा इसे अपने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पे शेयर करे ।
FAQs
जीरो के जनक कौन है?
भारत के महान गनित्यज्ञ आर्यभट्ट को जीरो का जनक माना जाता है।
0 का अर्थ क्या है?
शून्य एक गणितीय संख्या है जिसका अर्थ है “कुछ नहीं (Nothing)” या “रिक्त / खाली (Empty)”। इसका उच्चारण करने के लिए भारतीय गणितज्ञों ने इसे शून्य, शून्य स्थान, शून्य संख्या और निर्देशांक जैसे अनेक नामों से संबोधित किया।
भारत में शून्य की खोज किसने की थी ?
कहा जाता है की आर्यभट्ट ने शून्य की खोज की पर यह सत्य नहीं है क्योंकी इसकी खोज के सबूत देने मे वो असमर्थ रहे तथा शून्य की खोज ब्रह्मगुप्त द्वारा की गई थी ।
जीरो क्यों जरूरी है?
खाली स्थान दर्शाने तथा 1 से 9 की बाद संख्याओ को आगे बढ़ाने के लिए जीरो जरूरी है ।