हिंदी वर्णमाला: जैसा की हम जानते है आल इण्डिया रेडियो की एक रिपोर्ट के अनुसार पूरी दुनिया मे लगभग 61.6 करोड़ लोगों द्वारा हिन्दी भाषा बोली जाती है । जो की पूरी दुनिया मे English और Mandarin भाषा के बाद तीसरी सबसे ज्यादा बोले जानी वाली भाषा है,और इसका विकाश भी काफी तेजी से हो रहा है। हिंदी को भारत की राष्ट्रीय भाषा का भी दर्जा दिया गया है, और भारत के पड़ोसी देशों जैसे नेपाल, बांग्लादेश, श्रीलंका तथा अन्य बाहरी देशों जैसे मॉरीशस, फिजी और त्रिनिदाद और टोबैगो सहित कई अन्य देशों में भी बोली जाती है।
यदि आप हिंदी लिखना,बोलना, तथा सीखना चाहते है तो सबसे पहले आपको हिंदी वर्णमाला या तथा वर्णमाला के अक्षरों का ज्ञान होना बहुत ही जरूरी है। Hindi Varnmala में कुल 13 स्वर तथा 39 व्यंजन होते हैं। इस लेख में, हम आपको वर्णों के उच्चारण, लेखन तथा इनके प्रकार सहित हिंदी वर्णमाला सभी पहलुओ को जाने तथा समझेगे।
Hindi Varnamala क्या है ?
हिन्दी भाषा की सबसे छोटी इकाई वर्ण होते है, तथा वर्णों के व्यवस्थित समूह ही हिन्दी वर्णमाला कहा जाता है। मानक के अनुशार Hindi Varnamala में कुल वर्णों की संख्या 52 हैं। वर्णमाला मे सबसे पहले स्वर वर्ण तथा उसके बाद व्यंजन वर्ण आते हैं।
हिंदी वर्णमाला एक लेखन प्रणाली है जिसका उपयोग हिंदी भाषा को लिखने बोलने तथा पढ़ने के लिए किया जाता है। इसमें कुल 11 स्वर और 37 व्यंजन होते है। जो की एक विशिष्ट क्रम में व्यवस्थित होते हैं। हिंदी वर्णमाला को हम बाएं से दाएं लिखते है, और वर्ण के हर एक अक्षर एक विशेष ध्वनि या ध्वनि का प्रतिनिधित्व करते है। स्वरों वर्णों को स्वतंत्र अक्षरों के रूप में लिखा जाता है, जबकि व्यंजन को आधार व्यंजन और विशेषक चिह्नों के संयोजन के रूप में लिखा जाता है।
व्यंजनों के उच्चारण के लिए हमे स्वरों कि जरूरत होती है। हिंदी वर्णमाला हिंदी भाषा को सीखने, लिखने, और पढ़ने का एक महत्वपूर्ण उपकरण है, और इसका उपयोग भारत की अन्य भाषाओं में भी किया जाता है जो की देवनागरी लिपि का उपयोग करके लिखी जाती हैं, जैसे कि संस्कृत और मराठी भाषा।
Hindi Varnamala की उत्पत्ति
हिंदी भाषा का पूर्ण रूप से विकास काफी समय बाद हुआ हिंदी वर्णमाला के सबसे पुराने रूप का पता ब्राह्मी लिपि में लगाया जा सकता है, इसके पहले मुख्य तौर पर संस्कृत भाषा का प्रयोग हुआ करता था । ब्राह्मी लिपि का प्रयोग प्राचीन भारत में तीसरी शताब्दी ईसा पूर्व के आसपास किया जाता था। समय के साथ, विभिन्न क्षेत्रीय लिपियों का उदय हुआ, जिनमें शारदा, देवनागरी और सिद्धम लिपियाँ शामिल थीं, जिनका उपयोग विभिन्न प्रकार की भारतीय भाषाओं को लिखने के लिए किया जाता था।
देवनागरी लिपि, जो की आजकल हम देख रहे है आमतौर पर हिंदी, संस्कृत और कई अन्य भारतीय भाषाओं को लिखने के लिए उपयोग की जाती है, और इसका विकाश ब्राह्मी लिपि से हुआ है। माना जाता है कि देवनागरी लिपि का सबसे पुराना रूप 7वीं शताब्दी CE में इस्तेमाल किया गया था। समय के साथ, लिपि में कई परिवर्तन और संशोधन हुए, और 12 वीं शताब्दी CE तक, आधुनिक देवनागरी लिपि की मूल संरचना सामने आई और तबसे इसका उदय हुआ ।
हिंदी वर्णमाला की लिपि
हिंदी वर्णमाला की लिपि देवनागरी है। देवनागरी लिपि का उपयोग हिंदी, संस्कृत, मराठी, नेपाली, कश्मीरी, भोजपुरी, अवधी, मैथिली आदि भाषाओं में किया जाता है। देवनागरी लिपि में ४८ वर्ण होते हैं, जिनमें १२ स्वर और ३६ व्यंजन होते हैं। हिंदी वर्णमाला में स्वर और व्यंजनों के अलावा अनुस्वार, विसर्ग, नुक्ता, विराम चिह्न आदि भी होते हैं।
Hindi Varnamala के अक्षर
स्वर
अ | आ | इ | ई | उ | ऊ | ऋ |
ए | ऐ | ओ | औ | अं |
व्यंजन
क | ख | ग | घ | ङ | च |
छ | ज | झ | ञ | ट | ठ |
ड | ढ | ण | त | थ | द |
ध | न | प | फ | ब | भ |
म | य | र | ल | व | श |
ष | स | ह | क्ष | त्र | ज्ञ |
श्र | ड़ | ढ़ |
Hindi Varnamala in English
स्वर वर्ण (Vowel) | |||||
अ (a) | आ (aa) | इ (i) | ई (ee) | उ (u) | ऊ (oo) |
ऋ (ri) | ए (e) | ऐ (ai) | ओ (o) | औ (au) | अं (an) |
अः (ah) | |||||
व्यंजन वर्ण (Consonant) | |||||
क (k) | ख (kh) | ग (g) | घ (gh) | ङ (ng) | च (ch) |
छ (chh) | ज (j) | झ (jh) | ञ (ny) | ट (t) | ठ (th) |
ड (d) | ढ (dh) | ण (n) | त (t) | थ (th) | द (d) |
ध (dh) | न (n) | प (p) | फ (ph) | ब (b) | भ (bh) |
म (m) | य (y) | र (r) | ल (l) | व (v) | श (sh) |
ष (sh) | स (s) | ह (h) | क्ष (ksh) | त्र (tr) | ज्ञ (gy) |
श्र (sr) | ड़ (ḍ) | ढ़ (ḍh) | – |
हिंदी वर्णमाला में वर्णों या अक्षरों की संख्या
मानक के आधार पर हिन्दी वर्णमाला (Hindi Varnamala) में प्रयुक्त कुल वर्णों की संख्या 52 हैं। तथा इन्हे उनके लेखन, उच्चारण, तथा अन्य मापदंडों के आधार पर इन्हे दो भागों मे बाटा गया है, वर्णमाला मे हमे सबसे पहले स्वर वर्ण दिखाई देते है तथा उसके बाद में व्यंजन वर्ण आते है। कुल वर्ण – 52 जिनमे 13 स्वर तथा 39 व्यंजन आते है।
विभिन्न मापदंडों के आधार पर हिन्दी वर्णमाला में प्रयुक्त सभी वर्णों की संख्या निम्नलिखित है।
विभाजन | वर्णों की संख्या |
लेखन के आधार पर | 52 (13 स्वर, 39 व्यंजन) |
मानक वर्ण | 52 (13 स्वर, 39 व्यंजन) |
मूल वर्ण (अं, अः, ड़, ढ़, क्ष, त्र, ज्ञ, श्र को छोड़कर) | 44 (11 स्वर, 33 व्यंजन) |
उच्चारण के आधार पर (ऋ, अं, अः, ड़, ढ़” को छोड़कर) | 47 (10 स्वर, 37 व्यंजन) |
वर्णों के प्रकार
मानक के आधार पर वर्णों को दो भागों मे बाटा गया है। 1. स्वर , 2. व्यंजन
स्वर
स्वर वे वर्ण कहलाते है जिनका उच्चारण स्वतंत्र रूप से बिना किसी अन्य स्वर कि सहायता लिए बिना होता है । स्वरों का उच्चारण करते वक्त हमारे वायु हमारे मुख से बिना किसी अवरोध से बाहर आ जाती है। बिना स्वर वर्णों के व्यंजनों का उच्चारण नहीं होता, हिन्दी वर्णमाला मे मानक के आधार पर मूल स्वरों की स्वरो की संख्या 11 हैं जो की इस प्रकार है अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, और औ।
स्वर वर्णों के प्रकार (वर्गीकरण)
स्वरो का वर्गीकरण उनके प्रयोगों के आधार पर मुख्यतः तीन भागों मे किया गया है जो की नीचे दिए गए है।
1.मात्रा के आधार पर स्वरो के प्रकार
उच्चारण के आधार पर हिन्दी वर्णमाला में स्वरो के मुख्यतः तीन भेद होते हैं – १. ह्रस्व स्वर, २. दीर्घ स्वर, और ३. प्लुत स्वर। स्वर वर्णों का उच्चारण करने में लगने वाला समय’ उनकी मात्राओ की वजह से होता है।
ह्रस्व स्वर
Hrasva Swar एक मात्रा वाले स्वर होते है जिनका उच्चारण करने मे अन्य स्वरों की तुलना मे हमे काफी कम समय लगता हैं उन्हें हम ह्रस्व स्वर कहते हैं। हिन्दी वर्णमाला मे कुल चार ह्रस्व स्वर है जो की इस प्रकार है – अ, इ, उ, ऋ। इनको एकमात्रिक स्वर या लघु स्वर के नाम से भी जाना जाता है।
दीर्घ स्वर
Deergh Swar दो मात्राओ वाले स्वर होते है जिनके उच्चारण में ह्रस्व स्वरों की अपेक्षा double समय लगता है उन्हें हम दीर्घ स्वर के नाम से जानते है। हिन्दी वर्णमाला मे दीर्घ स्वरों की कुल संख्या सात हैं- आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ। दीर्घ स्वर को हम बड़ा स्वर या द्विमात्रिक स्वर के नाम से भी जानते है।
प्लुत स्वर
Plut Swar वे स्वर है जिनके उच्चारण में हमे ह्रस्व स्वर तथा दीर्घ स्वर दोनों से भी काफी अधिक समय लगता है, तथा इनका उच्चारण करते वक्त हमारे मुख से ज्यादे वायु का प्रवाह होता है। इनका प्रयोग हम अक्सर हम दूर की चीजों को बुलाने, पुकारने या संबोधित करने मे जैसे – लाऽऽ, ओ३म्, राऽऽम इत्यादि। हिन्दी व्याकरण के मानक के अनुसार इनकी प्लुत स्वरो की कोई निश्चित संख्या नहीं होती है।
प्लुत स्वर स्वरों का प्रयोग मुख्य रूप से संस्कृत भाषा मे होता है, हिन्दी भाषा मे इनका बहुत ही कम प्रयोग होता है।
प्लुत स्वर त्रिमात्रिक स्वर होते है, क्योंकि इसमें हमेशा तीन मात्राएँ होती हैं।इनका उच्चारण करते वक्त ह्रस्व स्वरो की तुलना मे तीन गुना तथा दीर्घ स्वरो से भी ज्यादा समय लगता है।
Plut Swar की पहचान करना– जिन शब्दों मे चिन्ह ( ३) का प्रयोग हुआ होता है वे प्लुत स्वर संस्कृत के शब्दों मे आते है। तथा जिन शब्दों मे चिन्ह (ऽ) का प्रयोग हुआ होता है वे प्लुत स्वर हिन्दी के शब्दों मे आते है।
2. उत्पत्ति के आधार पर स्वरो के प्रकार
हिन्दी वर्णमाला में उत्पत्ति के आधार पर स्वरो को मुख्यतः दो भागों में बाटा गया है तथा इनकी कुल संख्या 11 है।
- मूल स्वर,
- संधि स्वर
संधि स्वर को भी दो भागों मे विभाजित किया गया है जिन्हे हम कई नामों से जानते है । १.समान स्वर, २. संयुक्त या असमान स्वर।
मूल स्वर
मूल स्वर को हम शांत स्वर या स्थिर स्वर के नाम से भी जानते है। ये वे स्वर वर्ण होते है जिनकी उत्पत्ति की हमे कोई जानकारी नही होती है। हिन्दी वर्णमाला मे इनकी कुल संख्या 4 होती है। – जैसे- अ, इ, उ, ऋ।
संधि स्वर
वर्णमाला मे संधि स्वरों की कुल संख्या 7 होती है,तथा इनको दो भागों मे बाटा गया है। १. समान स्वर, २. संयुक्त या असमान स्वर।
समान स्वर
जब दो एक ही प्रकार के स्वरो को एक दूसरे जोड़ा जाता है , तब उन स्वरों के जोड़ से जो नया स्वर बनाता है उसे समान स्वर कहते हैं। वर्णमाला इनकी कुल संख्या 3 होती है- आ, ई, ऊ। समान स्वर को हम दीर्घ सजातीय अथवा सवर्ण के नाम से भी जानते है।
संयुक्त या असमान स्वर
जब दो अलग-अलग प्रकार के असमान स्वरो को जोड़ा जाता है,तथा उन स्वरों के जोड़ से जो नया स्वर बनता है उसे हम संयुक्त या असमान स्वर कहते हैं। वर्णमाला इन स्वरों की कुल संख्या 4 है। उदाहरण- ए, ऐ, ओ, औ। संयुक्त या असमान स्वर को हम विजातीय या असवर्ण स्वर के नाम से भी जानते है ।
3. उच्चारण के आधार पर स्वरो के प्रकार
उच्चारण के आधार पर हिन्दी की वर्णमाला स्वर को तीन भागों मे बाटा गया है। –
- अग्र स्वर: वर्णमाला मे जिन स्वर वर्णों का उच्चारण करते वक्त हमारी जीभ का आगे वाला भाग काम करता है, उन स्वरों को अग्र स्वर कहते है। हिन्दी वर्णमाला मे इनकी संख्या 4 है। उदाहरण: इ, ई, ए, ऐ।
- मध्य स्वर: जिन स्वरों का उच्चारण करते वक्त हमारी जीभ का बीच वाला हिस्सा काम करता है उन्हें मध्य स्वर कहते हैं। वर्णमाला मे इनकी संख्या सिर्फ 1 है। उदाहरण-अ ।
- पश्च स्वर: जिन स्वरो का उच्चारण करते समय हमारी जीभ का पिछला हिस्सा काम करता है, उन स्वरों को हम पश्च स्वर कहते हैं।Hindi Varnmala इनकी संख्या 5 है। उदाहरण – आ, उ, ऊ, ओ, औ।
आगत स्वर
आगत स्वरो का उदय हिन्दी भाषा मे काफी बाद मे हुआ है ये वर्णमाला के मूल स्वरों मे नहीं आते हिन्दी भाषा मे इनका आगमन अरबी-फारसी भाषा के प्रभाव से हुआ हैं। हिन्दी की वर्णमाला में इनकी संख्या सिर्फ एक (1) ऑ ( ॉ ) है। इन स्वरो का उच्चारण मुख्य तौर पर आ तथा ओ के मध्य में होता है। ये स्वर है – । उदाहरण-डॉलर आदि।
व्यंजन
हिन्दी वर्णमाला मे जिन वर्णों का उच्चारण करने के लिए हमे स्वरों की सहायता लेनी पड़ती है उन वर्णों को व्यंजन कहा जाता हैं। बिना स्वरों की सहायता की सहायता के व्यंजनों का उच्चारण नहीं किया जा सकता है। मानक के आधार पर वर्णमाला में कुल व्यंजन वर्णों की संख्या 33 हैं।
हिन्दी वर्णमाला चार्ट
व्यंजन के भेद
हिन्दी भाषा मे व्याकरण के आधार पर वर्णों को उनके उच्चारण तथा प्रयोग के अनुसार मुख्यतः तीन भागों मे बाटा गया है ।
- स्पर्शीय व्यंजन
- अन्तःस्थ व्यंजन
- उष्म व्यंजन
1. स्पर्शीय व्यंजन
हिन्दी वर्णमाला मे जिन वर्णों का उच्चारण करते समय हमारे मुख के आंतरिक भाग जैसे तालु, या जीभ एक दूसरे को स्पर्श करते है उन व्यंजनों को स्पर्शीय व्यंजन कहते हैं। उच्चारण के आधार पर इन व्यंजनों को 5 भागों मे बाटा गया है।
स्पर्शीय व्यंजन को हम मूल स्पर्शीय व्यंजन के नाम से भी जानते है हिन्दी वर्णमाला में इन वर्णों की कुल संख्या 25 है।
स्पर्शीय व्यंजनो का वर्गीकरण
उच्चारण स्थान | वर्ण | वर्ग |
कंठ | क ख ग घ ड़ | क वर्ग |
तालू | च छ ज झ ञ | च वर्ग |
मूर्धा | ट ठ ड ढ ण | ट वर्ग |
दन्त | त थ द ध न | त वर्ग |
ओष्ठय् | प फ ब भ म | प वर्ग |
2. अन्तःस्थ व्यंजन
हिन्दी की वर्णमाला मे जिन व्यंजन वर्णों के उच्चारण करनें में हमारे मुख मे वायु कम रुकती अर्थात, उसका कोई अवरोध नहीं होता उन वर्णों को अन्तःस्थ व्यंजन कहते हैं। वर्णमाला में इन व्यंजनों की संख्या 4 है।
उदाहरण– य, र, ल, और व
अर्द्ध स्वर
जिन वर्ण ध्वनियों का उच्चारण करते समय हमारे उच्चारित करने वाले अंगों में कहीं भी पूर्ण रूप से कोई स्पर्श नहीं होता तथा हमारे अंदर से निकलने वाली वायु का भी कोई अवरोध नहीं होता वे व्यंजन अर्ध स्वर व्यंजन कहे जाते है।
उदाहरण: य, व
लुंठित व्यंजन
लुंठित व्यंजन को हम प्रकंपित व्यंजन भी कहते है। लुंठित का तात्पर्य यह है की इसका उच्चारण करते वक्त हमे अपनी जीभ का आकार गोल करना पड़ता है। हिन्दी की वर्णमाला में सिर्फ ‘र्‘ लुंठित व्यंजन है। जैसे – राजा ।
पार्श्विक व्यंजन
हिन्दी वर्णमाला में जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण करते वक्त हमारी स्वाश का निष्कासन हमारी जीभ की दायी तथा बायी दोनों तरफ से होता है उन व्यंजन कहते है। जैसे – भालू , तालु आदि।
3. उष्म व्यंजन
व्यंजन ऊष्म व्यंजनों को संघर्षी व्यंजन भी कहा जाता है । varnamala मे जिन वर्णों का उच्चारण करते समय हमारे मुख से गर्म वायु का निष्कासन होता है तथा हमे अत्यधिक संघर्ष लगाना पड़ता है वे ऊष्म या संघर्षी व्यंजन कहे जाते है। हिन्दी वर्णमाला में उष्म व्यंजन वर्ण या संघर्षी व्यंजन वर्णों की कुल संख्या चार है।
उदाहरण – श, ष, स, और ह आदि ऊष्म व्यंजन है ।
काकल्य व्यंजन
काकल्य व्यंजन को काकलीय व्यंजन के नाम से भी जाना जाता है। हिन्दी की वर्णमाला जिन व्यंजन वर्णों का उच्चारण हमारे कंठ अर्थात गले के द्वारा होता है वे काकल्य व्यंजन कहलाते है । Vernmala मे सिर्फ ‘ह‘ व्यंजन ही काकल्य व्यंजन है।
व्यंजन वर्णों के कुछ अन्य प्रकार
द्विगुण व्यंजन: जो व्यंजन वर्ण किन्ही दो गुणों से मिलकर बने हुए होते है उन्हे द्विगुण व्यंजन कहा जाता हैं।
ताड़नजात व्यंजन: द्विगुण व्यंजन को ही उक्षिप्त या ताड़नजात कहा जाता है क्योंकी ये कब और कहाँ प्रयोग होते हैं।
फेका हुआ व्यंजन: द्विगुण व्यंजन का उच्चारण करते वक्त हम अंदर की वायु को अपनी जीभ के स्पर्श द्वारा तेजी से बाहर की ओर निकलते है इस वजह से इसे फेंका हुआ व्यंजन भी कहा जाता हैं।
हिन्दी की वर्णमाला इन सभी वर्णों की कुल संख्या सिर्फ 2 है। उदाहरण: ड़ और ढ़
इन व्यंजनों का प्रयोग कभी भी किस शब्द केआरम्भ में नहीं होता ये इनका प्रयोग हर बार किसी भी शब्द के बीच या फिर अंत में होता है। उदाहरण – चढ़ना, कड़वा , घड़ी आदि।
जब भी ड़, तथा ढ़, कभी भी किसी आधे या फिर कोई भी आधे व्यंजन वर्णों के साथ जुड़कर किसी शब्द के बीच में या जाए तब उस समय हम नुक्ता का प्रयोग नहीं नहीं करते है।
उदाहरण: तारामंडल या तारामण्डल, दंडित या दंण्डित
द्विगुण व्यंजन कभी भी अंग्रेजी शब्दों मे नहीं आते अर्थात इनका प्रयोग कभी भी किसी अंग्रेज़ी शब्द के साथ नहीं होता है। जैसे – कीड़ा, रोड़ा, आदि ।
नुक़्ता
नुक़्ता का मतलब आधा न् होता है। Hindi Varnamala मे इसका प्रयोग हमे ड़, तथा ढ़, वर्ण मे देखने को मिलता है। अर्थात ड़, तथा ढ़ वर्ण के नीचे जो बिंदु हमे दिखाई देती है उसे नुक्ता कहते हैं। नुक़्ता का प्रयोग आम तौर पर शब्दों पर ज्यादा ध्यान अथवा जोर देनें के लिए किया जाता है। जबकि अनुस्वार में दिखने वाले आधे “न्” का प्रयोग कभी भी शब्दों पर जोर देनें के लिए नहीं किया जाता ।
नुक़्ता वर्णों की उत्पत्ति हिन्दी भाषा मे काफी लेट हुई है, ये हिन्दी वर्णमाला के मूल वर्णों मे नही आते नुक़्ता अरबी तथा फारसी भाषा के प्रभाव से उत्पन्न हुए हैं। जो व्यंजन हिन्दी भाषा की मूल लिपि मे न हो इस प्रकार के व्यंजनों को बनाने के लिए हम नुक्ता व्यंजनों का प्रयोग करते है । जैसे कि ‘ढ़’ तथा ड़ हिन्दी भाषा की मूल देवनागरी वर्णमाला में नहीं था और न संस्कृत में।
आगत व्यंजन
जिन व्यंजन वर्णों मे नुक्ता लगा रहता है उन्हे हम आगत व्यंजन भी कहते हैं। हिन्दी भाषा में अंग्रेजी भाषा और उर्दू भाषा के प्रभाव से उत्पन्न हुए व्यंजन वर्णों का ठीक रूप से उच्चारण करने के लिए हम व्यंजन वर्णों के नीचे एक बिन्दु लगा देते है जिसे नुक़्ता कहा जाता हैं। हिन्दी व्याकरण मे आगत/नुक्ता व्यंजनों की मूल संख्या 5 है , तथा इनकी कुल संख्या 6 है।
आगत/नुक़्ता व्यंजन= क़ ख़ ग़ ज़ फ़ (मूल संख्या 5)
अन्य भाषाओ के प्रभाव से उत्पन्न हुए वर्ण =अ, क़, ख़, ग़, ज़, फ़ (कुल संख्या 6)
महत्वपूर्ण बिन्दु – किसी भी चार या उससे अधिक वर्ण वाले शब्दों मे अगर दो बार से अधिक आगत व्यंजनों का प्रयोग होता है तो उस दशा मे हम दूसरे वर्ण पर हम नुक्ता लगाते है ।
द्वित्व व्यंजन
किसी भी शब्द जब समान व्यंजन अर्थात एक ही व्यंजन दो बार प्रयुक्त हुआ हो परंतु पहले वाले वर्ण का अक्षरआधा हो तथा दूसरे वाला वर्ण उसी से सटा हुआ हो पर पूरा हो उस दशा मे उस वर्ण को द्वित्व व्यंजन कहा जाता है।
ज्यादे तर अगर देखा जाए द्वित्व व्यंजनो मे तीन अक्षरो से मिलकर बने हुए शब्द ही आते हैं। जैसे – सत्तू, बत्ती ,गुल्लक, सत्तर, बहत्तर, अस्सी, आदि ।
सयुंक्त व्यंजन
जब कभी भी दो या दो से अधिक व्यंजन जुडते है उन्हे संयुक्त व्यंजन कहा जाता है । हिन्दी भाषा की देवनागरी लिपि में दो व्यंजनों के संयोग के बाद हुए रूप-परिवर्तन के कारण निम्नलिखीत व्यंजनों का निर्माण हुआ है। क्ष = क्+ष, त्र = त्+र, ज्ञ = ज्+ञ, श्र = श्+र
मानक के आधार पर संयुक्त व्यंजनों को हिन्दी वर्णमाला में नहीं गिना जाता ।
Hindi letters
Hindi Varnamala मे मात्रए
हिंदी वर्णमाला (वर्णमाला) में, स्वरों को दर्शाने और व्यंजनों के उच्चारण को ठीक से करने के लिए उपयोग किए जाने वाले विशेषक चिह्न को मात्रए कहते हैं।
Hindi Varnamala में तीन प्रकार की मात्राएँ होती हैं:
- स्वर मात्रा : ये हिंदी में स्वरों को लिखने तथाउच्चारण करने के लिए उपयोग किए जाते हैं। हिंदी में 11 स्वर मात्राएं हैं: अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ॠ, ए, ऐ, ओ, औ।
2. व्यंजन मात्र: ये व्यंजन के उच्चारण को संशोधित करने के लिए प्रयोग की जाती हैं। हिंदी में व्यंजन मात्राएँ तीन प्रकार की होती हैं:
- बिंदु (.) – इसका प्रयोग किसी व्यंजन की ध्वनि को अनुनासिक करने के लिए किया जाता है।
- अनुस्वार (ं) – इसका प्रयोग व्यंजन के बाद स्वर ध्वनि को अनुनासिक करने के लिए किया जाता है।
- चंद्रबिन्दु (ँ) – इसका प्रयोग व्यंजन के पहले या बाद में स्वर ध्वनि को अनुनासिक करने के लिए किया जाता है।
- हलंत मात्र: इसका प्रयोग किसी व्यंजन की अन्तर्निहित स्वर ध्वनि को दूर करने के लिए किया जाता है। हलंत मात्रा को (-) चिन्ह से प्रदर्शित किया जाता है।
Hindi Varnamala का उच्चारण
वर्णमाला के स्वरों का उच्चारण।
स्वर | अंग्रेज़ी | उच्चारण |
अ | a | अध्यापक |
आ | aa | आदमी |
इ | i | इल्ली |
ई | ee | ईमानदार |
उ | u | उल्लू |
ऊ | oo | ऊँचा |
ऋ | ri | ऋषि |
ए | e | एक |
ऐ | ai | ऐतिहासिक |
ओ | o | ओखल |
औ | au | औषधि |
वर्णमाला के व्यंजनों का उच्चारण।
क | ka | कमल |
ख | kha | खरगोश |
ग | ga | गुरु |
घ | gha | घर |
ङ | nga | अंगूर |
च | cha | चाय |
छ | chha | छत्र |
ज | ja | जल |
झ | jha | झरना |
ञ | nya | बादल |
ट | ta | टमाटर |
ठ | tha | ठंडा |
ड | da | डमरू |
ढ | dha | ढोल |
ण | na | नमक |
त | ta | ताज |
थ | tha | थाली |
द | da | दाल |
ध | dha | धन |
न | na | नाटक |
प | pa | पानी |
फ | pha | फल |
ब | ba | बत्तख |
भ | bha | भाला |
म | ma | मछली |
य | ya | यान |
र | ra | रात |
ल | la | लड़का |
व | va | वट |
श | sha | शक्ति |
ष | shha | षट्कोण |
स | sa | सपना |
ह | ha | हाथी |
क्ष | ksha | क्षेत्र |
त्र | tra | त्रिशूल |
ज्ञ | gya | ज्ञानी |
आयोगवाह
अयोगवाह वे चिन्ह होते है जिनका हम स्वतंत्र रूप से प्रयोग नहीं किया जाता है , क्योंकी ये वर्णों के चिन्ह खुद मे अनुपयुक्त है। इनका प्रयोग सिर्फ किसी शब्द को सही ढंग से उच्चारण करने के लिए किया जाता है । अयोगवाह को दो भागों मे विभाजित किया गया है।
- अनुस्वार
- विसर्ग
अनुस्वार (ां)
अनुस्वार हिंदी वर्णमाला मे प्रयुक्त एक वर्ण होता है जो नाक से निकली आवाज को दर्शाता है। इसे दो नुक्तों के साथ लिखा जाता है। अनुस्वार हिंदी भाषा में वर्ण या शब्दों के ठीक ढंग से उच्चारण या लिखने के लिए प्रयोग किया जाता है। इसे हिंदी वर्णमाला में निम्नलिखित रूपों में लिखा जाता है:
- अं (उच्चारित होता है नाक से आवाज निकालते हुए)
- अँ (उच्चारित होता है अंत में नासिक वर्णों के बाद)
विसर्ग (ाः)
विसर्ग हिंदी वर्णमाला मे प्रयुक्त एक वर्ण है जो की अनुस्वार के बाद आता है। इसे भी हम दो नुक्तों के साथ लिखते है। जिन्हे हम अंग्रेजी में “dot” कहते है। विसर्ग हिंदी भाषा में वर्ण या शब्दों के सही उच्चारण या सही ढंग से लिखने के लिए किया जाता है। इसे हिंदी वर्णमाला में निम्नलिखित रूपों में लिखा जाता है:
- ह् (वर्ण का आधार होता है व वर्ण के ऊपर नुक्ता नहीं होता)
- ः (वर्ण के ऊपर नुक्ता होता है)
विसर्ग हिंदी में अंतिम वर्णों के बाद आता है और कुछ शब्दों के लिए वह उच्चारित होता है, जैसे कि “रामः” और “कृष्णः”।
अनुनासिक
अनुनासिक वर्ण हिंदी भाषा में वर्ण या शब्दों की उच्चारण या लिखावट में उपयोग किए जाते हैं। इसके चिन्हों का प्रयोग करके हम नाक से निकली आवाज को दर्शाते हैं ये मुख्यतः दो प्रकार के होते है ।
- चंद्र / स्वनिम चिन्ह ( ॉ )
- चन्द्रबिन्दु ( ाँ )
चंद्र / स्वनिम चिन्ह ( ॉ )
स्वनिम चिन्हों को हम अंग्रेजी में “Apostrophe” कहते हैं। यह चिह्न एक विराम चिह्न की तरह दिखता देता है लेकिन इसका उपयोग विशेष अर्थ देने या किसी शब्द के अंत में अक्षरों को काटने के लिए किया जाता है। हिंदी भाषा में, स्वनिम चिह्न (Apostrophe) का उपयोग अक्षरों को काटने के लिए नहीं किया जाता है। हिन्दी भाषा मे स्वनिम चिन्हों का प्रयोग अंग्रेज़ी भाषा के शब्दों हो हिन्दी मे उच्चारित या लिखने के लिए किया जाता है।
उदाहरण – डॉक्टर, हॉट, बॉल, कॉफी, कॉपी आदि।
चन्द्रबिन्दु ( ाँ )
चन्द्रबिन्दु चिह्न हिंदी वर्णमाला का ही एक मूल वर्ण है जो नुक्ता के रूप में लिखा जाता है। यह एक छोटा सा गोल चिह्न होता है जो कि कुछ अक्षरों के साथ मिलकर इनके उच्चारण को सही करता है। चन्द्रबिन्दु चिह्न को अंग्रेजी में “Dot under the letter” या “Dot below” कहा जाता है। यह हिंदी भाषा में वर्णों के उच्चारण को सही करने के लिए उपयोग किया जाता है।
उदाहरण:
- अँधा – इस शब्द में चन्द्रबिन्दु वर्ण अक्षर “ँ” अ के ऊपर लगा है।
- मुँह – इस शब्द में चन्द्रबिन्दु वर्ण अक्षर “ँ” म के ऊपर लगा है।
अनुनासिक और अनुस्वार में अंतर
अनुनासिक और अनुस्वार दोनों ही हिंदी वर्ण हैं परंतु दोनों में अंतर होता है।
अनुस्वार वह वर्ण होता है जो किसी अक्षर के ऊपर लगता है। इसे हम दूसरे वर्ण के साथ मिलाकर उच्चारण करते हैं। उदाहरण के लिए, “मैं” शब्द में “ँ” अनुस्वार है जो “म” के ऊपर लगता है। इसे हम “म्” और “ँ” को मिलाकर उच्चारित करते हैं।
वहीं, अनुनासिक वर्ण वह वर्ण होता है जो किसी अक्षर के ऊपर नहीं लगता है बल्कि इसके स्थान पर अधिकांश “अं” लगाया जाता है। यह वर्ण आमतौर पर शब्द के अंत में प्रयोग किया जाता है, उदाहरण के लिए, “राम” शब्द में “ं” अनुनासिक है जो “र” के बाद लगता है। इसे हम “राम्” को उच्चारित करते हुए उपयोग करते हैं।
पंचमाक्षर
हिंदी वर्णमाला में पंचमाक्षर को “ङ, ञ, ण, न, म” वर्ण से जाना जाता है। यह दो वर्णों का समन्वय है, जो हमें एक वर्ण के रूप में लगता है। इसे वर्णमाला में अलग से नहीं लिखा जाता है बल्कि हम इसे दो वर्णों को जोड़कर उत्पन्न करते हैं। यह वर्ण प्रायः संस्कृत और पाली भाषाओं में भी प्रयुक्त होता है।
पंचमाक्षर से मिलकर बने हुए शब्द जिन्हें अनुस्वार के स्थान पर प्रयोग किया जाता है – शंख – शङ्ख्, पंजी – पञ्जी, नंद – नन्द्, बंद – बन्द्, रञ्ज – रंज्, आदि।
Hindi Varnamala Chart pdf Download
नीचे दिए गए लिंक की मदद से आप Hindi Varnamala के PDF चार्ट को आप डाउनलोड कर सकते है।
Frequently Asked Questions (FAQ)
हिंदी वर्णमाला क्या है?
वर्णों के सुवेवस्थित समूह को हिंदी वर्णमाला कहते है। तथा यह हिंदी भाषा की लेखन प्रणाली है जिसमें 44 अक्षर होते हैं, जिनमें 11 स्वर और 33 व्यंजन शामिल हैं।
हिंदी वर्णमाला में कितने स्वर हैं?
हिंदी वर्णमाला में 11 स्वर हैं, जो अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ हैं।
हिंदी वर्णमाला में 11 स्वरों और 33 व्यंजनों के अलावा कौन सी दो अतिरिक्त ध्वनियाँ हैं?
हिंदी वर्णमाला में दो अतिरिक्त ध्वनियाँ अनुस्वार (अं) और विसर्ग (अ:) हैं, जिन्हें अयोगवाह कहा जाता है। इन दोनों ध्वनियों को हिंदी भाषा में मानक स्वर नहीं माना जाता है।
हिंदी वर्णमाला की विस्तृत जानकारी कहां मिल सकती है?
यदि आप हिंदी वर्णमाल का विस्तार से अध्ययन करना चाहते हैं तो इस पेज को पढ़ कर आप प्राप्त कर सकते हैं।
हिंदी वर्णमाला के 52 अक्षर कौन कौन से हैं?
अ आ इ ई उ ऊ ऋ ए ऐ ओ औ अं अः क ख ग घ ङ च छ ज झ ञ ट ठ ड ढ ण त थ द ध न प फ ब भ म य र ल व श ष स ह क्ष त्र ज्ञ; ढ़, श्र।
हिंदी भाषा में मूल स्वर कितने होते हैं?
हिन्दी वर्णमाला मे मूल स्वरो की संख्या 11 हैं- अ, आ, इ, ई, उ, ऊ, ऋ, ए, ऐ, ओ, औ।
Hindi Varnamala me क से ज्ञ तक कितने अक्षर होते हैं?
वर्णमाला मे क से ज्ञ तक कुल 36 अक्षर होते हैं.
हिंदी वर्णमाला के जनक कौन है?
हिंदी भाषा देवनागरी लिपि पर आधारित है, जिसके बारे में माना जाता है कि यह ब्राह्मी लिपि से विकसित हुई है। कोई एक व्यक्ति नहीं है जिसे हिंदी वर्णमाला का “पिता” कहा जा सकता है क्योंकि यह कई शताब्दियों में विभिन्न प्रभावों और परिवर्तनों के माध्यम से विकसित हुआ है। हालाँकि, हिंदी भाषा के लिए देवनागरी लिपि को मानकीकृत और लोकप्रिय बनाने का श्रेय संस्कृत के विद्वान और भाषाविद महर्षि वेद व्यास को जाता है। उन्हें वेदों सहित प्राचीन भारतीय शास्त्रों को संकलित करने के लिए जाना जाता है, और माना जाता है कि उन्होंने देवनागरी लिपि के विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी।