
औधोगिक मुंगेर: विकास के लिए तरस रही है धरहरा की धरती
नहीं है रोजगार के साधन, अन्यत्र पलायन कर रहे है मजदूर
औधोगिक विकास के लिए तरस रही है धरहरा की धरती
नहीं है रोजगार के साधन, अन्यत्र पलायन कर रहे है मजदूर
👉धरहरा में नही है एक भी कल-कारखाने
👉पत्थर उधोग, स्लेट उधोग हुआ बंद, हजारों मजदूर हुए बेकार
👉कालीन उधोग धरातल उतरने से पहले तोड़ दी दम
डॉ. शशि कांत सुमन
मुंगेर : आजादी के वर्षो बाद भी धरहरा प्रखंड का औधोगिक विकास नहीं होने से यहां के बेरोजगारों को रोजगार नहीं मिल पा रहा है। रोजगार नहीं मिलने के कारण स्वजनों का दो जून की रोटी की जुगाड़ के लिए अन्य राज्यों की ओर पलायन करना पड़ रहा है।कोरोना जैसी वैश्विक महामारी के दौरान अन्य राज्यों में यातना सह चुके मजदूरों ने स्थानीय स्तर पर रोजगार नहीं मिलने के कारण एकबार फिर रोजगार ढूंढने के लिए अन्य राज्यों की ओर निकलना शुरू कर दिया है।
रोजगार के लिए एक भी नहीं है कल कारखाने
कभी सुखाड़, कभी बाढ़ की विभीषिका झेलने के लिए अभिशिप्त धरहरा वासियो के लिए साल-दर-साल बीतता गया। लेकिन कोई जनप्रतिनिधियों ने यहां के बेरोजगारों को रोजगार दिलाने के लिए कल-कारखाने खोलने के लिए प्रयास नहीं किए। अंग्रेजी हुकूमत के समय से चले आ रहे पत्थर उत्खनन व स्लेट उधोग भी बंद हो गए। धरहरा के पहाड़ी इलाकों में उन्नत किस्म के पत्थरों के खदान है। पूर्व इन क्षेत्रों में लीज के माध्यम से पत्थर उत्खनन होता था।इन पत्थरों की मांग बिहार सहित अन्य राज्यों में होती थी। इसमें हजारों लोगों को रोजगार मिलता था। लेकिन इन वन क्षेत्रों को भीमबांध वन्य जीव आश्रयणी क्षेत्र घोषित किए जाने के बाद धरहरा के पहाड़ी इलाकों में पत्थर उत्खनन बंद हो गया। इसी तरह आजिमगंज के पहाड़ों में उन्नत किस्म का स्लेट का पत्थर मिलता है। कभी यहां के बने स्लेट देश अन्य राज्यों में रेल के माध्यम से भेजा जाता था। यह उधोग को भी वन्य जीव आश्रयणी क्षेत्र घोषित करने के बाद लीज को रद्द कर दिया।
बंगलवा कालीन उधोग धरातल उतरने के पूर्व तोड़ दी दम
पूर्व मंत्री उपेन्द्र प्रसाद वर्मा के कार्यकाल में बंगलवावासियों को रोजगार उपलब्ध कराने के लिए बंगलवा कचहरी चौक के पास कालीन उधोग भवन का निर्माण कराया गया। लेकिन यह योजना धरातल उतरने से पूर्व ही विभागीय उदासीनता के कारण दम तोड़ दी। वर्तमान में कालीन उधोग भवन में हेल्थ एन्ड वेलनेस सेंटर संचालित किया जा रहा है।
उधोग लगाने की है आपार संभावनाएं
धरहरा में कल कारखाने लगाने के लिए सैकड़ो एकड़ जमीन गैर मजरुआ जमीन है। इसके साथ ही टाल क्षेत्रों में सैकड़ो जमीन है। जहां सिर्फ एक फसल होती है। टाल क्षेत्र की जमीन एनएच 80 के साथ रेलमार्ग से भी जुड़ा हुआ है। इस जमीन को भी एक्वायर कर कल-कारखाने लगाए जा सकते है।
क्या कहते है धरहरावासी
समाजसेविका चंदा यादव, कैलाश यादव ने कहा कि रोजगार के साधन नहीं रहने के कारण रोजगार की तलाश में यहां बेरोजगार अन्यत्र पलायन करते है। यदि यहां कल-कारखाने स्थापित किया जाए तो लोगों को रोजगार अन्यत्र नहीं जाना पड़ेगा। प्रवीण कुमार सिंह, मिलन पटेल ने कहा कि नई ओधोगिक नीति के तहत कल-कारखाने की खोलने की जरूरत है। छोटे-छोटे उधोग के लिए भी बैकों के उदारता दिखाते युवाओं को ऋण देने की भी आवश्यकता है।